Monday 9 January 2012

ईश्वर के हाथ

गुरु और शिष्य रेगिस्तान से गुज़र रहे थे. गुरु यात्रा में हर क्षण शिष्य में आस्था जागृत करने के लिए ज्ञान देते रहे थे.
“अपने समस्त कर्मों को ईश्वर को अर्पित करदो” – गुरु ने कहा – “हम सभी ईश्वर की संतान हैं और वह अपने बच्चों को कभी नहीं त्यागते”.
रात में उन्होंने रेगिस्तान में एक स्थानपर अपना डेरा जमाया. गुरु ने शिष्य से कहा कि वह घोड़े को निकट ही एक चट्टान से बाँध दे.
शिष्य घोड़े को लेकर चट्टान तक गया. उसे दिनमें गुरु द्वारा दिया गया कोई उपदेश याद आ गया. उसने सोचा – “गुरु संभवतः मेरी परीक्षा ले रहे हैं. आस्था कहती है कि ईश्वर इस घोड़े का ध्यान रखेंगे”.
और उसने घोड़े को चट्टान से नहीं बाँधा.
सुबह उसने देखा कि घोड़ा दूर-दूर तक कहीं नज़र नहीं आ रहा था.
उसने गुरु से जाकर कहा – “आपको ईश्वर के बारे में कुछ नहीं पता ! कल ही आपने बताया था कि हमें सब कुछ ईश्वर के हांथों सौंप देना चाहिए इसीलिए मैंने घोड़े की रक्षा का भर ईश्वर पर डाल दिया लेकिन घोड़ा भाग गया!”
“ईश्वर तो वाकई चाहता था किघोड़ा हमारे पास सुरक्षित रहे” गुरु ने कहा – “लेकिन जिस समय उसने तुम्हारे हांथों घोड़े को बांधना चाहा तब तुमने अपने हांथों को ईश्वर को नहीं सौंपा और घोड़े को खुला छोड़ दिया.

3 comments:

  1. बहुत प्रशंसनीय ....
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  2. “ईश्वर तो वाकई चाहता था किघोड़ा हमारे पास सुरक्षित रहे” गुरु ने कहा – “लेकिन जिस समय उसने तुम्हारे हांथों घोड़े को बांधना चाहा तब तुमने अपने हांथों को ईश्वर को नहीं सौंपा और घोड़े को खुला छोड़ दिया.

    बहुत गहरा भाव है.

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