एक नए ब्लागर के लिए लिखने से अधिक पढ़ना सुविधाजनक होता है.
हिंदी में टिप्पणी करना भी अभी कठिन है.
इस ब्लाग की एक फालोअर हैं डा. दिव्या जी.
उनके ब्लाग पर पढ़ा कि आयुर्वेद के शोध का पेटेंट विदेशी करा रहे हैं.
हमारा कोहेनूर जा चुका है और अब जो बचा है वह भी हाथ से निकलता जा रहा है.
अमरीका में योग का प्रशिक्षण स्कूलों में दिया ही जा रहा है.
चीज हमारी है और लाभ विदेशी उठा रहे हैं.
यह सचमुच चिंता जनक बात है.
उनके ब्लाग का यूआरएल यह है
http://zealzen.blogspot.com/2012/01/blog-post_04.html
ब्लागों को पढ़ते पढ़ते एक और ब्लाग पर नजर पड़ी. उस पर भी आयुर्वेद के प्रति चिंता व्यक्त की गई थी. इसे एक विदेशी हमले के रूप में देखा जाना चाहिए परंतु ब्लाग लिखने वाले मनोरंजन में ज्यादा रूचि रखते हैं और राष्ट्र हित के इस मुददे पर वैसी चिंता देखने में नहीं आई जैसी कि आनी चाहिए थी. हमारी कमजोरी यही है. हमें इसे दूर करना होगा और अन्याय के विरूद्ध मत और जाति से ऊपर उठकर एकजुट विरोध करना होगा.
रचना जी के ब्लाग पर पढ़ा कि शाकाहारी भोजन के लिए अब भोजनालय खोलने में रेस्टोरेंट वालों को लाभ नजर आ रहा है.
शाकाहारी रेस्टोरेंट खोलने वालों की भांति आयुर्वेद से शुद्ध लाभ कमाने वाली कंपनियों को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए. यह नहीं कि धन कमाने के अलावा अपना कर्तव्य कुछ भी याद न रखा जाए.
thanks for sharing this info.
ReplyDeleteबेहद सशक्त अभिव्यक्ति।...
ReplyDeletebdhai shandar abhivyakti hetu .
ReplyDeleteआपकी बातों से पूरा इत्तेफाक रखते हैं1
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